जिस्म काल का बंधुआ मजदूर आत्मा गिरवी रख मन फरार कहीं दूर। आनंद का नंदन दुख की नगरी में ठोकरें खाने को देखो कैसा मजबूर। कोई मन को पकड़ के लाओ जल्दी से कर्मों का कर्ज चुकाओ। नाम की पूँजी ले सतगुरू से भजन सिमरन से फिर इसे बढ़ाओ। आत्मा को आजाद करने का है यही दस्तूर। जिस्म काल का बंधुआ मजदूर आत्मा गिरवी रख मन फरार कहीं दूर। बी डी शर्मा चण्डीगढ़ बंधुआ मजदूर