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मां का घर बरसों बीत गए, उस घर से विदा हुए। बरसों ब

मां का घर
बरसों बीत गए, उस घर से विदा हुए। बरसों बीत गए, नई दुनियां बसाए हुए। फिर भी याद आते हैं वो पल, जो हमने थे वहां बिताए हुए। रम गई हूं इस नई ज़िंदगी में, घर, परिवार, और बच्चों की खुशी में। फिर भी जब भी आता है, नाम मां के घर का, खो जाती हूं उस घर की कहानी में। कुछ पुरानी बातें, कुछ पुरानी यादें, ज़िंदा है आज भी, वो कहीं, कुछ रिश्तें-नाते। फुरसत में ही सही, कुछ पल के लिए ही सही, चाहती हूं जीना, फिर से वही ज़िंदगी, ये मेरी तमन्ना ही सही। कितना भी बसा लो अपना घर, पर याद आता है, मां का घर। खुद बन कर भी मां,
याद आती है सिर्फ़ अपनी मां।

©Samrat
  man ka Ghar
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Deepak Kumar

New Creator

man ka Ghar #विचार

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