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देश हो आज़ाद बस यही उनका अरमान था, सब एक ही थे न

देश हो आज़ाद बस यही उनका अरमान था, 
सब एक ही थे न कोई हिन्दू न कोई मुसलमान था 
जाने कितनों ने देश की खातिर अपनी जान गंवाई थी 
तब कहीं जा कर हमने ये आज़ादी पायी थी 
देश आज़ाद है मगर खतरे आज भी मंडराते हैं, 
सेना मैं आज भी बहादुर भगत सिंह मिल जाते हैं 
अशफ़ाक और बिस्मिल आज भी सरहद पर जान गंवाते हैं 
लेकिन क्या सच मैं हम आज़ादी की कीमत को समझ भी पाते हैं
स्वतंत्र दिवस पर जो तिरंगा बड़ी शान से हम लहराते हैं 
अगले ही दिन फिर क्यूँ वो पैरों मैं पड़े मिल जाते है
मत मनाना ये पर्व अगर शहीदों के लिए सम्मान न हो 
है अगर देश भक्ति तो कोशिश करना तिरंगे का अपमान न हो

©Jyoti Dixit
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