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ना रास्तों की फिक्र,ना मंजिल का ठिकाना है एक दिन त

ना रास्तों की फिक्र,ना मंजिल का ठिकाना है
एक दिन तो हमे तेरा भी,शहर छोड़ के जाना है
इतनी जल्दी भी नही की,ऐसे ही चला जाऊ
पहले तो तेरे अक्स को,अपनी आंखों में बसाना है।।
जो सोचते थे मुझको,आवारा इस शहर का
उन्हें अपनी आवारगी का,आईना दिखना है
तेरे हुस्न की हजार तारीफ,करते है हजारों लोग
मगर हकीकत में मेरी जान,अपना दुश्मन जमाना है।।

©Mo Kasim #lab
ना रास्तों की फिक्र,ना मंजिल का ठिकाना है
एक दिन तो हमे तेरा भी,शहर छोड़ के जाना है
इतनी जल्दी भी नही की,ऐसे ही चला जाऊ
पहले तो तेरे अक्स को,अपनी आंखों में बसाना है।।
जो सोचते थे मुझको,आवारा इस शहर का
उन्हें अपनी आवारगी का,आईना दिखना है
तेरे हुस्न की हजार तारीफ,करते है हजारों लोग
मगर हकीकत में मेरी जान,अपना दुश्मन जमाना है।।

©Mo Kasim #lab
mokasim9396

Azhar Ali

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