#DearZindagi बेग़म साहिबा End of the story आखिर कोई कहे भी तो किसको क्या बीत रही है उस पर अक्सर लोग इल्ज़ाम लगाते है।लड़की की ही गलती होती है,और हजार तरह के ताने।दुख ये नही लड़की को कहते है दुख ये है कि वो उसके माँ-बाप के संस्कारो को गलत ठहराते है।ऐसे लोगो की मानसिकता को देख कर मैं अक्सर सोचती हूँ,कि उसकी जगह इनकी बहन या बेटी होती तो क्या ये अपने संस्कारो को गलत ठहराने की हिम्मत रखते हैं।उसको वो फ़ोन कॉल्स आते रहे,घुटती रही वो मासूम अकेले में,लोगों का उसे बातों-बातों में चरित्रहीन कहना उसको झकझोर कर रख देता था,इससे तंग आकर वो निकल पड़ी घर से अकेले न जाने कहाँ।ख़ैर कहते हैं न सब एक से नही होते,इसका प्रमाण दिया उसके कुछ साथियों ने।उसको छोटी बहन स प्यार दिया,माँ द सम्मा दिया,ख़ुद से ज्यादा उसे वक़्त दिया।और इस तरह उन साथियों की मदद से वो सदमें से बाहर आई आज भी शुक्रिया अदा करती हैं वो रब का इस एक घटना से उसकी ज़िन्दगी से सब गिरी हई सोच के व्यक्ति ,जो सिर्फ कहना जानते है।कुछ इस तरह जाकर इस कहानी का अंत हुआ उस लड़की का नंबर बदलने पर।