इन बेरुखी हवाओ ने, कदमों को जाने कहाँ छोड़ दिया । हाथों में एकतरफ़ा कलम देकर, मन्जिल के पीछे छोड़ दिया ।। SOURABH...... सौरभ बेखबर शायरी......