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# #storytellingday #stars #birds #airpolluti | Eng

#nojoto #storytellingday #stars #birds #airpollution #humangreed #doomsday
(Caption..) मैं महज़ 10 साल का था। स्कूल की छुट्टियाँ चल रही थी, और वो दिन आ गया था जिसके लिए मैं पुरे साल इंतज़ार करता था क्योंकि मैं दादा के घर जाने वाला था। उनके साथ जब भी मैं होता तो कोई भी मुझे अपनी मन मानी करने से नही रोकता, पुरे दिन मैं उनके साथ घूम सकता था, अपना मन चाह पहन सकता मन चाह खा सकता था । लेकिन उस सब से भी ज्यादा मुझे दो चीज़े प्यारी थी सुबह सुबह पार्क में घूमना और रात को उनके सिरहाने सर रख तारो की बातें करना। दादा के घर सुवह सुबह जल्दी उठना होता। तो घड़ी की सुईयां 5:30 पर पहुची दादा ने मुझे शर पर जाने के लिए उठा दिया जिसका मुझे भी बेसब्री से इंतज़ार था। धीरे धीरे आसमान में सूरज चमकने लगा, मीठी मीठी ठंडी हवा मेरे गालो और हाथो को चूम रही थी,पेड़ो पर बैठे चकते परिन्दे मानो हमारा ही इंतज़ार कर रहे थे। दादा और मैं अपनी बातें करते हुए पार्क की तरफ बढ़ रहे थे। जैसे ही हम पार्क में दाखिल हुए मैं दादा का हाथ छोड़ भागने लगा दादा ने भी मुझे जाने दिया और कुछ ना कहा उन्हें पता था की मैं अपने दोस्तों से मिलने जा रहा हूं। साल में कुछ ही दिन तो मिलते है उनसे रूबरू होने के लिए। वंहा एक छोटा सा तालाब था जिसमे खूब सारी बत्तखें तैरती रहती और पेड़ो पर चहकती अनेको चिडिया। ये बेज़ुबान मुझसे खूब बाते करते। और फिर मैं दादा को आवाज़ लगा कर उन्हें अपने पास बुलाता और दादा मुझे उन परिंदों के नाम और उनसे जुड़ी कहानियाँ सुनाते और मैं भाग भाग कर उन परिंदों का पीछा करता। मेरे दोस्तों में सुमार थे वो प्यारी सी आवाज़ वाली कोयल वो पीले पैरो वाला गुलशन वो बड़े पंखो वाला मोर और वो मीठू मियाँ जिसे सब तोता कहकर बोलाते है जो मुझे बिलकुल भी पसंद नही था क्योंकि घर पर भी सारे बच्चे मुझे उसी नाम से बुलाते थे क्योंकि शायद उसकी तरह बहोत बोलता था लेकिन मुझे सबसे ज्यादा पसंद थी उस तालाब में तेहरने वाली बत्तखे जो बहोत शालीनता से तेहरती रहती बिना किसी आवाज़ और मैं बस उन्हें निहारता रहता। उसके बाद दिन भर खाने पीने छोट मोटे खेल खेलने में जैसे सतरंज, क्रम बोर्ड  में निकल जाता। और फिर शाम होते होते आसमान की चादर तारो से सज जाती। रात के खाने के बाद मैं दादा के साथ छत पर सोने चला जाता। दादा को खुली छत पर सोने की आदत थी। चाँद तारो से भरा पूरा खुला आसमान और दादा और मैं। पूरा आसमान इन सितारों से लावा लैब भरा होता उस दर्शय को देख कर ही मन भर जाता था। अलग अलग सितारों के समुहू और उनमे छुपी दादा की कहानियां हर सितारों का समूह एक आकर में बना होता, दादा बताते वो जो चाँद के पास सबसे ज्यादा चमकने वाला तारा है न वो ध्रुव तारा है और जो सात तारे एक साथ उलटे चमच्च के आकर में है वो सप्तऋषि तारा समूह है। कहानिया सुनते सुनते मैं दादा के काँधे पर सर रख कर सो जाता। धीरे धीरे वक़्त गुजरा,हालात बदले और दादा भी गुजर गए। उन्हें हमारा साथ छोड़े हुए दस साल हो गए और मैं अब 25 बरस का ही गया हु। अब ना पार्क जाकर उन परिंदों से बात करने का मन करता है ना ही रात को तारे देखने का क्योंकि वो सब भी शायद दादा की तरह कही गम हो गए है। ना अब वो तालाब है ना वो परिन्दे ना ही वो जग मगाते सितारे आसमान में चमकते है। जब दादा इस दुनिया को छोड़ कर गए तो उनसे बहोत से लोग प्यार जताने वाले उनका ख्याल रखने वाले उनके लिए दावा दारु का इंतज़ाम करने वाले मौज़ूद थे लेकिन उन बेजुबानो ने तो एक बार भी नही कहाँ की उन्हें क्या तकलीफ थी। इस दुनिया पर जितना हक़ हमारा है उतना उनका भी तो है शायद हम ये भूल गए है। दादा के दुनिया से चले जाने की वजह उनकी डायबिटीज की बिमारी थी लेकिन उन परिंदों और तारो का गायब हो जाना शायद वो बिमारी है जिसे हमने पैदा किया है अपने लालच से। अपनी दुनिया को साजाते सजाते हमने कब उनकी दुनिया उजाड़ दी यह हम भी नही जानते।
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(Caption..) मैं महज़ 10 साल का था। स्कूल की छुट्टियाँ चल रही थी, और वो दिन आ गया था जिसके लिए मैं पुरे साल इंतज़ार करता था क्योंकि मैं दादा के घर जाने वाला था। उनके साथ जब भी मैं होता तो कोई भी मुझे अपनी मन मानी करने से नही रोकता, पुरे दिन मैं उनके साथ घूम सकता था, अपना मन चाह पहन सकता मन चाह खा सकता था । लेकिन उस सब से भी ज्यादा मुझे दो चीज़े प्यारी थी सुबह सुबह पार्क में घूमना और रात को उनके सिरहाने सर रख तारो की बातें करना। दादा के घर सुवह सुबह जल्दी उठना होता। तो घड़ी की सुईयां 5:30 पर पहुची दादा ने मुझे शर पर जाने के लिए उठा दिया जिसका मुझे भी बेसब्री से इंतज़ार था। धीरे धीरे आसमान में सूरज चमकने लगा, मीठी मीठी ठंडी हवा मेरे गालो और हाथो को चूम रही थी,पेड़ो पर बैठे चकते परिन्दे मानो हमारा ही इंतज़ार कर रहे थे। दादा और मैं अपनी बातें करते हुए पार्क की तरफ बढ़ रहे थे। जैसे ही हम पार्क में दाखिल हुए मैं दादा का हाथ छोड़ भागने लगा दादा ने भी मुझे जाने दिया और कुछ ना कहा उन्हें पता था की मैं अपने दोस्तों से मिलने जा रहा हूं। साल में कुछ ही दिन तो मिलते है उनसे रूबरू होने के लिए। वंहा एक छोटा सा तालाब था जिसमे खूब सारी बत्तखें तैरती रहती और पेड़ो पर चहकती अनेको चिडिया। ये बेज़ुबान मुझसे खूब बाते करते। और फिर मैं दादा को आवाज़ लगा कर उन्हें अपने पास बुलाता और दादा मुझे उन परिंदों के नाम और उनसे जुड़ी कहानियाँ सुनाते और मैं भाग भाग कर उन परिंदों का पीछा करता। मेरे दोस्तों में सुमार थे वो प्यारी सी आवाज़ वाली कोयल वो पीले पैरो वाला गुलशन वो बड़े पंखो वाला मोर और वो मीठू मियाँ जिसे सब तोता कहकर बोलाते है जो मुझे बिलकुल भी पसंद नही था क्योंकि घर पर भी सारे बच्चे मुझे उसी नाम से बुलाते थे क्योंकि शायद उसकी तरह बहोत बोलता था लेकिन मुझे सबसे ज्यादा पसंद थी उस तालाब में तेहरने वाली बत्तखे जो बहोत शालीनता से तेहरती रहती बिना किसी आवाज़ और मैं बस उन्हें निहारता रहता। उसके बाद दिन भर खाने पीने छोट मोटे खेल खेलने में जैसे सतरंज, क्रम बोर्ड  में निकल जाता। और फिर शाम होते होते आसमान की चादर तारो से सज जाती। रात के खाने के बाद मैं दादा के साथ छत पर सोने चला जाता। दादा को खुली छत पर सोने की आदत थी। चाँद तारो से भरा पूरा खुला आसमान और दादा और मैं। पूरा आसमान इन सितारों से लावा लैब भरा होता उस दर्शय को देख कर ही मन भर जाता था। अलग अलग सितारों के समुहू और उनमे छुपी दादा की कहानियां हर सितारों का समूह एक आकर में बना होता, दादा बताते वो जो चाँद के पास सबसे ज्यादा चमकने वाला तारा है न वो ध्रुव तारा है और जो सात तारे एक साथ उलटे चमच्च के आकर में है वो सप्तऋषि तारा समूह है। कहानिया सुनते सुनते मैं दादा के काँधे पर सर रख कर सो जाता। धीरे धीरे वक़्त गुजरा,हालात बदले और दादा भी गुजर गए। उन्हें हमारा साथ छोड़े हुए दस साल हो गए और मैं अब 25 बरस का ही गया हु। अब ना पार्क जाकर उन परिंदों से बात करने का मन करता है ना ही रात को तारे देखने का क्योंकि वो सब भी शायद दादा की तरह कही गम हो गए है। ना अब वो तालाब है ना वो परिन्दे ना ही वो जग मगाते सितारे आसमान में चमकते है। जब दादा इस दुनिया को छोड़ कर गए तो उनसे बहोत से लोग प्यार जताने वाले उनका ख्याल रखने वाले उनके लिए दावा दारु का इंतज़ाम करने वाले मौज़ूद थे लेकिन उन बेजुबानो ने तो एक बार भी नही कहाँ की उन्हें क्या तकलीफ थी। इस दुनिया पर जितना हक़ हमारा है उतना उनका भी तो है शायद हम ये भूल गए है। दादा के दुनिया से चले जाने की वजह उनकी डायबिटीज की बिमारी थी लेकिन उन परिंदों और तारो का गायब हो जाना शायद वो बिमारी है जिसे हमने पैदा किया है अपने लालच से। अपनी दुनिया को साजाते सजाते हमने कब उनकी दुनिया उजाड़ दी यह हम भी नही जानते।
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vinaykumar3349

Vinay Kumar

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