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बस करो!अब बहुत हुआ, बंद करो ये अंधा कुआँ, जहाँ बे

बस करो!अब बहुत हुआ, बंद करो ये अंधा कुआँ,
 जहाँ बेटी दफनाई जाती है,कोई चीख नहीं सुन पाती है,
 बंद करो ये अंधेरी खार, सुन लो जरा उसकी चीख पुकार,


 दुनिया किस मानवता की बात करती हैं,
सदियां गुजरी मानव आए, बेटियां आज तलक डरती हैं,

डरती हैं अंधेरे से,डरती हैं किसी के साए से,
डरती हैं इस काली रात से,बेवजह हर बात से,

 और ये डर क्यों है?सोचा है कभी,
बेटी की मनोदशा को समझा है कभी,

 किसी को हक नहीं खेले उसकी अस्मत से,
 खूनी भेड़िये अनजान हैं उस बेटी की किस्मत से,
 समाज की प्रताड़ना और वो अकेलापन,
 काली स्याही से लिख देते हो तुम उसका जीवन,

 नहीं तुम मानव कहलाने लायक नहीं,
मरना तुम्हें था,तुम्हें जीने का कोई हक नहीं,

ये मोमबत्ती,दिए,चिराग जलाते हो क्यों?,
सड़क पे उतरते हो बेटों को नहीं सिखाते हो क्यों?,
 बेटा बेटी के इस फर्क को नहीं मिटाते हो क्यों?,
अंधी है सरकार,राजा सब,
नया कानून कोई नहीं लाते हो क्यों?

©Neelam bhola अंधा कुआँ
बस करो!अब बहुत हुआ, बंद करो ये अंधा कुआँ,
 जहाँ बेटी दफनाई जाती है,कोई चीख नहीं सुन पाती है,
 बंद करो ये अंधेरी खार, सुन लो जरा उसकी चीख पुकार,


 दुनिया किस मानवता की बात करती हैं,
सदियां गुजरी मानव आए, बेटियां आज तलक डरती हैं,

डरती हैं अंधेरे से,डरती हैं किसी के साए से,
डरती हैं इस काली रात से,बेवजह हर बात से,

 और ये डर क्यों है?सोचा है कभी,
बेटी की मनोदशा को समझा है कभी,

 किसी को हक नहीं खेले उसकी अस्मत से,
 खूनी भेड़िये अनजान हैं उस बेटी की किस्मत से,
 समाज की प्रताड़ना और वो अकेलापन,
 काली स्याही से लिख देते हो तुम उसका जीवन,

 नहीं तुम मानव कहलाने लायक नहीं,
मरना तुम्हें था,तुम्हें जीने का कोई हक नहीं,

ये मोमबत्ती,दिए,चिराग जलाते हो क्यों?,
सड़क पे उतरते हो बेटों को नहीं सिखाते हो क्यों?,
 बेटा बेटी के इस फर्क को नहीं मिटाते हो क्यों?,
अंधी है सरकार,राजा सब,
नया कानून कोई नहीं लाते हो क्यों?

©Neelam bhola अंधा कुआँ
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Neelam bhola

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