राब्ता मेरा कुछ तो राब्ता है तुझसे वरना दो पल का ठिकाना हैं अपना यूं अजनबी पर याकिन केसे करती गम जुदाई का केसे सेहती ।। तन्हाइयां भी मुझसे राब्ता जोड़ती फिर तेरी महफिल में मैं बदनाम केसे होती ।।। राबता₹₹##