सुबह की लालिमा,मद्धम सी फलक पर विस्तारित हो रही थी अँगड़ाइयाँ लेता प्राति, आनंदित सा था और ड्योढ़ी पर बैठे काक दिनचर्या में लीन आँखे खुली थी मेरी भी,पर विडम्बना ये था की मैं कुछ देख नहीं पा रहा था अभी भी दोपहर की तस्वीर थी आँखों में Quotes, Shayari, Story, Poem, Jokes, Memes On Gokahani