सुरमई साड़ी पहनकर धरती पर उतरी है रात तारों जड़ी पहनकर चोली झूम-झूमकर चलती रात माथे पर चंदा का झूमर गालों पर झूमर की आभा किरणों की लाली से जैसे मांग सिंदूर सजाती रात सप्त ऋषि का हार गले में ध्रुव का हीरा नथनी में सोने के गहनों से लदकर सज-धजकर निकली है रात अंधियारे मेले में घूम कर आ बैठी है मेरे आंगन चंदा से मिलकर खुश होती सूरत से शर्माती रात मेरा हाथ पकड़ कर मुझको ले जाती है नदी किनारे सप्त ऋषि का हार व झूमर सब गहने दिखलाती रात एक कहानी रोज सुनाती कभी हंसाती कभी मनाती अपनी बाहों में समेटकर रोज सुलाने आती रात पवन लोरियां गाती जाती रात मुझे सहलाती जाती मां बन बैठी रहे सिरहाने सारी रात न जाती रात खिड़की पर देती जब दस्तक हौले-हौले सहर सलोनी फिर आने का वादा करके बादल में छुप जाती रात। *** #"रात" सुरमई साड़ी पहनकर धरती पर उतरी है रात तारों जड़ी पहनकर चोली झूम-झूमकर चलती रात माथे पर चंदा का झूमर