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हो त्रिभुवन में सर्वत्र तुम्हीं, विस्तार कौन नापे,

हो त्रिभुवन में सर्वत्र तुम्हीं, विस्तार कौन नापे,
 तुम क्रोध में जब आ जाओ तो ब्रह्माण्ड सकल कांपे
तुम्हें ध्यावें त्रिपुरारी, गावें महिमा तुम्हारी, तुम हो दिव्य
सकल गुण धाम,
नील वर्ण धनुर्धारी,  प्रभु अवध बिहारी
तुमसे बड़ा है,तुम्हारा नाम

जय श्री राम

©KAJAL The poetry writer हो त्रिभुवन में सर्वत्र तुम्हीं विस्तार कौन नापे,
 तुम क्रोध में जब आ जाओ तो ब्रह्माण्ड सकल कांपे
तुम्हें ध्यावें त्रिपुरारी गावें महिमा तुम्हारी, तुम हो दिव्य
सकल गुण धाम,
नील वर्ण धनुर्धारी,  प्रभु अवध बिहारी
तुमसे बड़ा है,तुम्हारा नाम

जय श्री राम
हो त्रिभुवन में सर्वत्र तुम्हीं, विस्तार कौन नापे,
 तुम क्रोध में जब आ जाओ तो ब्रह्माण्ड सकल कांपे
तुम्हें ध्यावें त्रिपुरारी, गावें महिमा तुम्हारी, तुम हो दिव्य
सकल गुण धाम,
नील वर्ण धनुर्धारी,  प्रभु अवध बिहारी
तुमसे बड़ा है,तुम्हारा नाम

जय श्री राम

©KAJAL The poetry writer हो त्रिभुवन में सर्वत्र तुम्हीं विस्तार कौन नापे,
 तुम क्रोध में जब आ जाओ तो ब्रह्माण्ड सकल कांपे
तुम्हें ध्यावें त्रिपुरारी गावें महिमा तुम्हारी, तुम हो दिव्य
सकल गुण धाम,
नील वर्ण धनुर्धारी,  प्रभु अवध बिहारी
तुमसे बड़ा है,तुम्हारा नाम

जय श्री राम