हुकुम चलाने की आदत कभी नहीं थी हमें, मग़र जब से हम पर हक तुम ने जताया है, ये नुस्खा हम ने हर बार तुम पर ही आज़माया है, हुकुमरान हमें ही बना हमें ही ज़ालिम ठहराया है। हर बार कोई न कोई यों ही मिला हमें पराया है, हमें अपना बता, हकदार बस अपना बताया है, खुशियों की तलब जगा कर वीरान ज़िन्दगी में, दर्द जगा जहन्नुम से भी बदतर यों बनाया है। हाँ, मैं नाचती आई हूँ सबकी यों ही उँगलियों पर, बस इक पेशा यही ही तो तुम ने मुझे सिखाया है, तुुम ने हर बार जिस्म का ही व्यापार करवाया है, चाहतों के नाम पर जिस्म को नीलाम कराया है। हाँ, मैं साधारण सी बस इक तबायफ ही तो हूँ, उजले होते हुए भी कालिख में तुम्ही ने गिराया है, मग़र ये तो बताओ, कौन हूँ मैं, कहाँ से आई हूँ, तुम्हीं ने तो बेचकर बस कोठे का मेहमान बनाया है। बन सकती थी बेटी, बहन, बहु, माँ भी किसी की, मग़र तुम ने बस मुझे स्त्री बना फायदा उठाया है, तुम ने पौरुष को त्याग कायरता को अपनाया है, सच कहूँ तो खुद को ही खुद की नज़रों से गिराया है। हुकुम चलाने की आदत कभी नहीं थी हमें, मग़र जब से हम पर हक तुम ने जताया है, ये नुस्खा हम ने हर बार तुम पर ही आज़माया है, हुकुमरान हमें ही बना हमें ही ज़ालिम ठहराया है। हर बार कोई न कोई यों ही मिला हमें पराया है, हमें अपना बता, हकदार बस अपना बताया है, खुशियों की तलब जगा कर वीरान ज़िन्दगी में,