बचपन और उम्मीद मासूम थे बचपन में, सच्चे थे। मिट्टी के घर थे, इरादे पक्के थे। पता ही नहीं चला, बड़े-बड़े महल के जिम्मेदारियों के खड़े हो गए। कोशिश तो बहुत की, की खड़ा रहूं बचपन वाली डगर पर, पता ही नहीं चला हम कब बड़े हो गए। #BachpanAurUmeed Lakshmi singh Soumya Jain