पूछा था! उसने सबसे, बेटी आएगी,या बेटा होगा घर में , किस्मत का खेल भी निराला था, घर आयी लक्ष्मी को वो ठुकरा रहा था, उठा ना पा रहा बाहों में उसको, ना ला पाया प्यार आंखों में उसके लिए, ना जाने क्या कसूर था उस नवजात का,, प्यार से गोद में जाना चाहती थीं वो जिसके, वो उसी बेटी का बाप तो था, बिलखना चाहती थीं वो गोद में जिसके, वो उसको आंखे उठा कर ना देख पा रहा था, वो नादान भी बेटी को बोझ समझ बैठा था, समझदार होकर भी नासमझ बन बैठा था, समझ गई होगी बेटी भी उसकी,उसका नहीं कोई कसूर, शायद उसको भी है, अपने मर्द होने पर गरुर! यहीं रहा होगा कारण, तभी तो ना निकला उसकी आंखों से एक भी आंसू! दिव्या भंडारी नवजात