उसकी यादों से घबराहट सी अजब होने लगी ऐसा लगता है जिस्म से जाँ अलग होने लगी थे दिल के फैसले पर दिल की सुनवाई ना हुई मगर हर फैसले में दिल को सज़ा होने लगी है उस से दोस्ती या उसकी याद से है मुहब्बत इक यही कश्मकश ज़हन में रोज़ होने लगी मेरे हर शेयर में उस का ही जिक्र आने लगा मेरी हर गज़ल भी उसी की नज़र होने लगी नशा नहीं है अगर यार-ए-खुश-नज़र में कोई तो इस नज़र को क्यों उसी की तलब होने लगी #घबराहट