बचपन और शैतानी ◆◆◆◆◆ हमें अक्सर याद आता है वो गुजरा जमाना , वो पिता जी के साथ बैठ साईकल पर पहले दिन स्कूल को जाना। गजब था अध्यापको का वो दाए हाथ से बांए कान को पकड़वा कर ,हमारी उम्र का अंदाजा लगाना। हमे अक्सर याद आता है वो गुजरा जमाना एक रुपया मिलने पर ,वो सौ तरह के सपने सजना फिर दुकानदार को ये भी दे-दो वो भी दे-दो कहकर खूब सताना । छुटी के दिन माँ ज़रा देर से जगाना, फिर खुद ही पहले जाग दोस्तो के साथ मिल छुक़-छुक़ कर रेल तो कभी साईकल के टायरों से दौड़ लगाना । हमे अक़्सर याद आता है वो गुजरा जमाना, कुछ पसंद का न मिलने पर हमारा वो रूठ जाना फिर पिता जी के डाँटने पर वो माँ का प्यार जताना, घर के आँगन में मिटटी से सपनो के महल बनाना, कभी कागज की कश्ती तो कभी बना जहाज कागज का फुर्र-फुर्र कर उड़ाना । कहाँ मुमकिन है उन सभी बातों को लिख पाना, कहाँ मुमकिन है उस दौर से फिर से गुज़र जाना, कहाँ मुमकिन है उस सच्ची हँसी को फिर हँस पाना । बचपन । • • • • _-_-_-_-_-_-_-_-_-_-_-_-_-_-_-_-_-_- #followformore #सच_से_अधिक_कुछ_नही