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जिंदगी जोखिम बिना अधूरी हैं सहम कर जीने में क्या म

जिंदगी जोखिम बिना अधूरी हैं
सहम कर जीने में क्या मजबूरी हैं।

मत सोचो, अगले पल क्या होगा,
मंजिल पाने को चलना जरूरी हैं।

ठान कर कुछ भी मंजिल पा सकते हो,
चाँद की भी अब इंसान ने नाप ली दूरी हैं।

अफ़सोस न करो,चाहे कुछ भी घट जाये,
चलने वाले को मिलती सूरज सी नूरी हैं।

जिंदगी जोखिम बिना अधूरी हैं
सहम कर जीने में क्या मजबूरी हैं।

©Kamlesh Kandpal
  #Jokhim