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यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्‍क्षति। शुभा

यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्‍क्षति। शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः॥12.17॥

 भावार्थ :

 जो न कभी हर्षित होता है, न द्वेष करता है, न शोक करता है, न कामना करता है तथा जो शुभ और अशुभ सम्पूर्ण कर्मों का त्यागी है- वह भक्तियुक्त पुरुष मुझको प्रिय है ।

©Arup Das
  #gita
arupdas2367

Arup Das

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#gita #Mythology

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