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समुद्र अथाह जलराशि को आगोश में समेटे , मैं सब दे

समुद्र  अथाह जलराशि को 
आगोश में समेटे ,
मैं सब देखता हूँ
 लेटे-लेटे!
मानवीय संवेदनाओं से
 शून्य होती धरा,
भूख,गरीबी और लाचारी 
से कराहती मानवता ,
दिन-रात फलती-फूलती
दानवता,
 स्वार्थपूर्ति के लिये 
जनमानस को 
बलि का बकरा बनाते
बकरकट्टे,
दुबली पतली काया वाले का
शोषण करते हट्टे -कट्टे,
आख़िर कब तक चलती रहेगी
अंधेरगर्दी ?
कब तक फलते रहेंगे बेदर्दी ?
किस दिन पैदा होगी 
इन्हें हमदर्दी ?
देखने के सिवा 
कर भी क्या 
सकता हूँ? 
बहुत क्षुद्र हूँ,
मैं समुद्र हूँ। #समुद्र
समुद्र  अथाह जलराशि को 
आगोश में समेटे ,
मैं सब देखता हूँ
 लेटे-लेटे!
मानवीय संवेदनाओं से
 शून्य होती धरा,
भूख,गरीबी और लाचारी 
से कराहती मानवता ,
दिन-रात फलती-फूलती
दानवता,
 स्वार्थपूर्ति के लिये 
जनमानस को 
बलि का बकरा बनाते
बकरकट्टे,
दुबली पतली काया वाले का
शोषण करते हट्टे -कट्टे,
आख़िर कब तक चलती रहेगी
अंधेरगर्दी ?
कब तक फलते रहेंगे बेदर्दी ?
किस दिन पैदा होगी 
इन्हें हमदर्दी ?
देखने के सिवा 
कर भी क्या 
सकता हूँ? 
बहुत क्षुद्र हूँ,
मैं समुद्र हूँ। #समुद्र