सिसकियों से शब्द होंगे,होगी आंसुओ की स्याही जज़्बात ए क़लम से लिखूंगा, तेरा किस्सा ए बेवफ़ाई। तू नही तेरी रूह का ज़र्रा ज़र्रा रोयेगा, कुछ पाने से पहले ही तू सब कुछ खोएगा दरिया से प्यास शायद मिट गई थी तेरी जो तूने अक्सर आना छोड़ दिया। कुछ ऐसा लिख दूंगा ए बेवफ़ा, जो ताउम्र तू आँशु ए दरिया मैं रोयेगा। हिज़्र से ख़ाक फर्क नही पड़ता मुझे बस तन्हाई थोड़ा खल सी जाती है जो वक़्त किसी की आँखों मैं खो जाता था उस वक़्त मैं अब चैन की नींद आती है| दिल मायूश सा रहता था, अब मैंने जिंदादिली सीखा दी उसे हर वक़्त रट इश्क़ की लगाए बैठा था, मैंने इश्क़ मैं बुज़दिली बता दी उसे। आकर वक़्त अब पूछता है,क्यों तू मुझे ज़ाया करता था हर पल को उसमें,उसको हर पल मैं जिया करता था मैं हंस के बस यूँ कह देता हूँ,जिसे तू जीना समझ रहा था वहाँ तो मैं घुट घुट के मरता था मैं परिंदा तो था पर उड़ने को तड़पता था तू उन बीते पलों की कहता है अरे मेरा तो आने वाला हर कल तड़पता था। 🙏 🙏 < - Written by - > 🙏🙏 Ⓖⓘⓡⓔⓔⓢⓗ ⓜⓐⓣⓗⓟⓐⓛ