तेवरी... हम कब खाते हैं अब रोटी खातीं हमें रोटियां रे | उनके पेटों की खातिर हम बनते रहे सब्जियां रे | कितनी बीतीं सदियाँ प्यारे कटी नहीं हथकड़ियाँ रे | शब्दों के भीतर माचिस की रख तो सही तीलियाँ रे | सर से पांवों पर आनी हैं कल को सभी टोपियाँ रे | ©Monika Gupta Rotiya