वसुंधरा की पूरी हो अभिलाषा (शेष भाग) जब माता के आंखो के आगे बच्चे तड़प तड़प बिलखते है, मुंह के निवाले छीन आतंकी महिषासुर सा हर्षनाद करते है, जब तथाकथित सभ्य समाज में अबलायें तड़पाई जाती है, वृद्ध पिता के कंधों पर जब बच्चो की अर्थी उठाई जाती है, जब भरे सड़क पर किसी बहन की मर्यादा निलाम होती है, आजादी के आंगन मे जब मां की हृदय तार तार हो रोती है, जब प्रशासक बन संहारक दुष्ट गुण्डों का साथ निभाते हैं, न्याय के संरक्षक भी जब बैरी आदम भक्षक बन जाते है, तब बहन की रक्षा के लिए भाई को समर में आना पड़ता है, मातृत्व की रक्षा के लिए स्वर को हथियार बनाना पड़ता है। रचे कोई इतिहास यह नहीं मेरी रही कभी भी अभिलाषा, न्याय सदा होवे अमर, हो वसुंधरा की पूरी सारी अभिलाषा।। ©Tarakeshwar Dubey वसुंधरा