जब कभी काले बादलों के साये नभ में छा जाते तब यह सोचकर परेशान हो जाता गहन बरसात में बादलों का रंग क्यों बदल जाता फिर यह सोच कर संतोष कर लेता जब भी जीवन का मौसम खराब हो जाता है और वक्त की हवाये विपरीत चलने लगती तो अपनों के चेहरे का रंग भी तो कुछ इस तरह ही उभर कर सामने आता। इसमें आश्चर्य करने जैसा कुछ भी नहीं है सब यथार्थ की वास्तिविकता है। ✍👬कमल भंसाली यथार्थ अवलोकन