पुस्तक बेशक़ ले ली है तुमने मेरी जगह मगर कब तक टिक पाओगे इस नासमझ मानुष को कब तक बहलाओगे एक रोज वो जान ही जाएगा तेरा छल आखिर तब तुम अपना पतन ही पाओगे! अपनी लत में डुबोकर तुम उन्हें ही कमज़ोर बना रहे हृदय रोग,अवसाद जैसी कई बीमारियों से जूझा रहे एक दिन वो सब समझ जाएगा फेक देगा तुम सबको औऱ फिर से नवयुग लाएगा जीत होगी भव्य हमारी फिर ये पुस्तक अपनी प्रतिष्ठा पाएगी हा फिर से कलम हमारी ही जय बोली जाएगी!! books VS mobiles