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पंचतत्वों से निर्मित ये नश्वर काया प्रकृति ने ही


पंचतत्वों से निर्मित ये नश्वर काया प्रकृति ने ही दिया उपहार में जीवन।
पल पल मनुष्य करता रहता है अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति का दोहन।

प्रकृति की ख़ामोशी खामोश रहकर भी हमको समझाने का करती रहती है प्रयत्न।
जब पार होती सहनशीलता की सीमाएं प्रकृति स्व-अस्तित्व बचाने को करती है यत्न।

कभी ख़ामोशी से कभी रौद्र रूप दिखाकर सबको अपनी अहमियत बताती है।
फिर भी जब नहीं समझता है मूर्ख इंसान तो नए नए रूपों में कहर बरपाती है।


 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें..🙏

💫Collab with रचना का सार..📖

🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों  को रचना का सार..📖 के प्रतियोगिता:-138 में स्वागत करता है..🙏🙏

*आप सभी 6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।

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