Nojoto: Largest Storytelling Platform

उसके हाथ मेरे हाथ पर थे और मैं समझ न सका, होठों पर

उसके हाथ मेरे हाथ पर थे और मैं समझ न सका,
होठों पर दुआ के स्वर थे और मैं समझ न सका।

माँ का साथ छूटा तब से जीवन तन्हा-तन्हा सा,
माँ-बाप ही सच्चे ईश्वर थे और मैं समझ न सका।

औरों ने साथ दिया लेकिन अपनों से दगा मिली,
मेरे दुश्मन मेरे घर थे और मैं समझ न सका।

कठिनाइयों की धूप से जीवन झुलस रहा था,
माँ-बाप छाया के शज़र थे और मैं समझ न सका।

'सरस' हुआ जब से अकेला सब हुए बेगाने,
अपने ही बने कहर थे और मैं समझ न सका

©सतीश तिवारी 'सरस' 
  #एक_कविता