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अब झिझक कैसी क्यों, इज़हार-ए-मोहब्बत से डरना..! ज

 अब झिझक कैसी क्यों,
इज़हार-ए-मोहब्बत से डरना..!

जीवन तो है कभी ख़ुशी,
कभी ग़म का बहता झरना..!

जी लो जी भर के ज़िन्दगी सनम,
क्यों आज कल की फ़िक्र में पल पल मरना..!

न सोचो ज़माने की न दबाओ ख्वाईशों को,
क्यों अंदर ही अंदर ग़म को भरना..!

ज़िन्दगी तुम्हारी मर्ज़ी भी तुम्हारी हो,
फिर क्यों दुनियाँ से डरना..!

बैठे हो एक ही ग़म लिए कब से,
बयाँ कर जेहन से दुःख को खाली करना..!

इश्क़ है तो ज़ाहिर करो,
क्यों किसी के डर से मुकरना..!

आकर जीवन में मेरे महका दो इसे,
जज़्बात भी चाहें अब बाहर निकलना..!

©SHIVA KANT
  #izharemohabbat