हर पीढ़ी की है अपनी एक गठरी उसमें चाहे हों परम्पराओं की चादर या हो कुछ सपनों की कुंजी इसको सन्दूक में भर हमने दी नयी पीढ़ीे को बिन ताले की चाभी हमने भी तो कभी ली थी किसी बूढ़ी हड्डी की लाठी अब हांक रहे हैं उससे जवान बछड़ों की पगही वो मुँह मारता है हौदे में, खाता है मेरा ही दाना पानी मेरे ही रस्से में बंधा रेंकता है, कहता है आज़ादी आज़ादी मग़र ये शोर शराबा कुछ पुराना सा है हमारा भी बिता कल कुछ ऐसा सा है कल को उनका भी विद्रोह यूँ दब जाएगा उमर का असर उन्हें रस्से से बाहर खींच लाएगा तब वो भी पकड़ेंगे वही लाठी हांकेंगे अपनी ही भेड़ों को उनके ही ऊन से उनके गले का रस्सा बना कर दौड़ाएंगे उन्हें अंतहीन रास्तों पे बेचेंगे पीढ़ी दर पीढ़ी पुरानी वही बासी कहानी सपनों से आसमान छू लेने की कहानी भुलायेंगे पैरों के फटे हुए निशानों जख्मों को पेट में कुलबुली मचाती भूखों को देंगे चाँद और सूरज पे पहुँचने की गौरवशाली कहानी #सपनें #हकीकत #बोझ #गठरी #पीढ़ी #Yqbaba #YQdidi #Dreams