मर्द हैं, कभी खुल कर रोते नहीं, तकलीफों के समंदर में पलकें अपनी कभी भिगोते नहीं...! हां होती है, तकलीफ अक्सर इनको भी जीने में... कठोर बाहर से हैं तो क्या हुआ? आखिर इक दिल रखतें हैं ये भी मखमल- सा भीतर अपने सीने में...! इनका भी मन करता है, कभी किसी से ज़िद करने को.. अपने ख्वाहिशों के शहर की, वो खाली - सी गलियां भरने को..! हथेली है, संग आकार भिन्न ऊंगलियों का, हर कोई एक सा भी तो होता नहीं.. और गलत होने पर किसी एक के, हर मर्द "बेकार" भी तो होता नहीं..! सब कुछ बेहतर कैसे करें? इस उलझन से निकलते नहीं.. सब कर लेते हैं ज़िद इनसे अक्सर, बचपन के बाद ,ज़िद भी ये किसी से करते नहीं..! कितनी भी हों जिम्मेदारियां, ये अक्सर पूरी करते हैं.. अपने दुखों को करके किनारे, मुस्कान चेहरे पर हमेशा रखते हैं..!!❤️ ©Monika Vashishta© #मर्द #स्ट्रॉन्ग #loving #मोनीकाशर्मा