माना कि मुझें बांट रही है टुकड़ों में, पर ख़ुद भी तो बिखर रही। क्यों शाज़िश कर रही है ए ज़िंदगी? जब मेरी लकीरें संवर रही। -रेखा "मंजुलाहृदय" #ज़िंदगी #ए ज़िंदगी #मंजुलाहृदय #Rekhasharma #Sep 9th, 2020