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इक सख्स आज कल रूठा रूठा लगता है इश्क़ नहीं झूठ का क

इक सख्स आज कल रूठा रूठा लगता है
इश्क़ नहीं झूठ का कारखाना लगता है

कोई शिकवा गीला भी नहीं है उससे
न जाने क्यू दिन-ब-दिन किनारा करता है


             
                                ✍ अमितेश निषाद ( सुमित ) इक सख्स आज कल रूठा रूठा लगता है
इश्क़ नहीं झूठ का कारखाना लगता है

कोई शिकवा गीला भी नहीं है उससे
न जाने क्यू दिन-ब-दिन किनारा करता है
             
                     ✍ अमितेश निषाद ( सुमित )
इक सख्स आज कल रूठा रूठा लगता है
इश्क़ नहीं झूठ का कारखाना लगता है

कोई शिकवा गीला भी नहीं है उससे
न जाने क्यू दिन-ब-दिन किनारा करता है


             
                                ✍ अमितेश निषाद ( सुमित ) इक सख्स आज कल रूठा रूठा लगता है
इश्क़ नहीं झूठ का कारखाना लगता है

कोई शिकवा गीला भी नहीं है उससे
न जाने क्यू दिन-ब-दिन किनारा करता है
             
                     ✍ अमितेश निषाद ( सुमित )