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गर मालूम था तुझे अंजाम-ए-मोहब्बत फिर मुझसे दिल लगा

गर मालूम था तुझे अंजाम-ए-मोहब्बत
फिर मुझसे दिल लगाया क्यूं था,
गर छोड़ना था मुझे यूं कर के अकेला,
तो मुझको अपना बनाया क्यूं था
गर दम नही था सफर में मंज़िल तक जाने का,
तो साथ कदम  मेरे बढ़ाया क्यूं था,
अरे हम तो खुश थे ज़माने में पत्थर बनकर 
इस दिल को धड़कना सिखाया क्यूं था।।

©Aarzoo Rajput
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