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हिस्से में आयीं हैं.. रुसवाईयाँ अक्सर. कुछ तो संग

हिस्से में आयीं हैं.. 
रुसवाईयाँ अक्सर.
कुछ तो संगीन जुर्म रहा होगा.. 

चुपचाप है 'वो' भी, 
मुझे दर्द में देखकर..
जब इंसाफ़ उसका है, 
 तो खरा ही होगा.. 

बेशक़ उलझा हूँ मग़र, 
एक नेक इंसान हूँ.. 
सोच के क्यूँ रहूँ परेशां, 
 'उसने' भी तो कुछ सोचा होगा..

छटेंगे दुख के बादल घनेरे,
 होंगे संघर्ष से सपने पूरे...
कर्म-क्षेत्र है ये धरती,
सब यहीं पे चुकता होगा.. 


(वो- ईश्वर, उसने- ईश्वर)

©Chanchal's poetry
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