बाहर की दुनिया से नही डरता मैं अंदर झांकता हूं तब घेर लेता है मुझे अंधेरा ऐसा क्यों ? जैसे पसरा हो सन्नाटा किसी श्मशान घाट के कोने में | बाहर की दुनिया से नही डरता मैं अंदर झांकता हूं तब घेर लेता है मुझे अंधेरा ऐसा क्यों ! जैसे पसरा हो सन्नाटा किसी श्मशान घाट के कोने में |