मन में ना कोई ग्लानि हो.., भक्ति मेरी ना अभिमानी हो, ताउम्र श्याम की सेवा करूँ... ऐसी मेरी जिंदगानी हो..। वंदन से ना कोई हानि हो.., बद्दुआओं की ना जुबानी हो.., ताउम्र श्याम की सेवा करूँ.. बस, ऐसी मेरी जवानी हो..। मन हिंसा का ना अनुगामी हो.., ना रक्त रंजित कुर्बानी हो.., ताउम्र श्याम की सेवा करूँ... हाथों में नित अमृत पानी हो..। मन ना द्वेष भरा अज्ञानी हो.., ना घमंड की खींचातानी हो.., ताउम्र श्याम की सेवा करूँ.., ऐसी आनंदमय रवानी हो..। कवि आनंद दाधीच, बेंगलूरु, भारत ©Anand Dadhich #वंदना #भक्तिकविता #kaviananddadhich #poetcommunity #poetananddadhich #poemsonkrishna #Krishna