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ज़िंदगी उतनी ही ख़ूबसूरत लगेगी, जितना तुम उसे देखन

ज़िंदगी उतनी ही ख़ूबसूरत लगेगी,
जितना तुम उसे देखना चाहोगे
सब जगह वैसा ही दिखेगा, जैसा तुम देखना चाहोगे
उसके लिए आँखों की ज़रूरत नहीं , 
ज़रूरत है एक प्यार में सराबोर मन की।

मन 
मन जो तलाशता है
गर्मियों में इठलाता हुआ अमलतास, 
ठिठुरती हुई सर्दियों में खिलता हरसिंगार, 
बरसात में भीगी मिट्टी की महक और 
बसंत में नारंगी आभा लिए गेंदे के फूल।

मन
मन ही तो है, जो सुनना चाहता है
गंगा किनारे पक्षियों का कलरव
मंदिरों में बजती घंटियाँ,
कार्तिक स्नान कर भजन गाती माँ।

मन ही तो है, 
जो खो जाना चाहता है 
उन लंबी और अंतहीन सड़कों पर,
देवदार और चीड़ के पेड़ों के बीच,
बर्फ से ढके पहाड़ो में,
किसी नदी के किनारे।

मन ही तो है जो ये सब चाहता है, 
तो आओ ढूँढें अपने प्यार से भरे मन को,
जो मचलना चाहता है, उड़ना चाहता है
उसके लगा दें पंख और उड़ने दें।

©MR ज़िंदगी उतनी ही ख़ूबसूरत लगेगी,
जितना तुम उसे देखना चाहोगे
सब जगह वैसा ही दिखेगा, जैसा तुम देखना चाहोगे
उसके लिए आँखों की ज़रूरत नहीं , 
ज़रूरत है एक प्यार में सराबोर मन की।

मन 
मन जो तलाशता है
ज़िंदगी उतनी ही ख़ूबसूरत लगेगी,
जितना तुम उसे देखना चाहोगे
सब जगह वैसा ही दिखेगा, जैसा तुम देखना चाहोगे
उसके लिए आँखों की ज़रूरत नहीं , 
ज़रूरत है एक प्यार में सराबोर मन की।

मन 
मन जो तलाशता है
गर्मियों में इठलाता हुआ अमलतास, 
ठिठुरती हुई सर्दियों में खिलता हरसिंगार, 
बरसात में भीगी मिट्टी की महक और 
बसंत में नारंगी आभा लिए गेंदे के फूल।

मन
मन ही तो है, जो सुनना चाहता है
गंगा किनारे पक्षियों का कलरव
मंदिरों में बजती घंटियाँ,
कार्तिक स्नान कर भजन गाती माँ।

मन ही तो है, 
जो खो जाना चाहता है 
उन लंबी और अंतहीन सड़कों पर,
देवदार और चीड़ के पेड़ों के बीच,
बर्फ से ढके पहाड़ो में,
किसी नदी के किनारे।

मन ही तो है जो ये सब चाहता है, 
तो आओ ढूँढें अपने प्यार से भरे मन को,
जो मचलना चाहता है, उड़ना चाहता है
उसके लगा दें पंख और उड़ने दें।

©MR ज़िंदगी उतनी ही ख़ूबसूरत लगेगी,
जितना तुम उसे देखना चाहोगे
सब जगह वैसा ही दिखेगा, जैसा तुम देखना चाहोगे
उसके लिए आँखों की ज़रूरत नहीं , 
ज़रूरत है एक प्यार में सराबोर मन की।

मन 
मन जो तलाशता है
krishnaregar1861

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