बहे फागुन की धारा तो तुम्हारी याद आती है सुबह से शाम तक मेरी इसी मे बीत जाती है न रंगों का ठिकाना है गुलालों से भी दूरी है न जाने क्यों मेरी होली तुम्हारे बिन अधूरी हैं अगर हो साथ तुम मेरे तो सातो रंग मिल जाए मेरे सूखे सरोवर मे कमल का फूल खिल जाए #फागुनी