ज़िन्दगी से एक ही शिकायत है कि "जिंदगी" इक शिकायत है तुझसे! के आख़िर क्या है क्या तू? क्यों हर वक़्त उलझी रहती है तू ? बखूबी जानती है के मंजिल मौत है सबकी, फिर भी... क्यों नये रँगों में रँगी रहती है तू? सब के साथ तेरा अलग व्यवहार, किसी के लिये बेहद दिलचस्प, तो किसी को तुझसे बहुत है ख़ौफ़, ये खेल अनोखा सबके संग, क्यों खेलती रहती है तू? किसी के लिए मिसाल, तो किसी का उजाड़, बता ना जिंदगी, क्या है ...! क्या तू...? "जिंदगी" इक शिकायत है तुझसे! के आख़िर क्या है क्या तू? क्यों हर वक़्त उलझी रहती है तू ? बखूबी जानती है के मंजिल मौत है सबकी, फिर भी... क्यों नये रँगों में रँगी रहती है तू?