पटक पटक के फोड़ डाला समूचा नारियल उसने भी फिर दांत से खुरच के कभी और नाखूनों से निकाल के खाने लगा था धो लिए वो टुकड़े उसने जो उचक गए थे इधर उधर बाद में खाने को रख चला गया बहुत कुछ सीख गया था वो इंसानों को देख समझ के या हम ही नहीं बढ़ पाए हैं एक भी कदम आगे की ओर जिसे सभ्यता कहते हैं .... सभ्यता