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मुझे मालूम है दरख़्त का ग़म सो लिख देता हूँ हर वर

मुझे मालूम है दरख़्त का ग़म

सो लिख देता हूँ हर वर्क़ पर तुम्हारा नाम

तुम्हारा नाम...
जिसे लेते ही खिल उठता है मेरा चेहरा

शायद खिल उठे वो कटे हुए शाख़-ए-दरख़्त फिर से

काग़ज़ पर लिखे जाने के बा'द 
तुम्हारा नाम... तुम्हारा नाम
मुझे मालूम है दरख़्त का ग़म

सो लिख देता हूँ हर वर्क़ पर तुम्हारा नाम

तुम्हारा नाम...
जिसे लेते ही खिल उठता है मेरा चेहरा

शायद खिल उठे वो कटे हुए शाख़-ए-दरख़्त फिर से

काग़ज़ पर लिखे जाने के बा'द 
तुम्हारा नाम... तुम्हारा नाम