आग उगलते सूरज की तपती धूप में वृक्ष की शीतल छांव मिल जाए तो तन को मिली तकलीफ भी सुहानी लगती है कंक्रीट के जंगल ऊर्जा से निकलती बनावटी रोशनी इजाद की हुई नदियां उस नदियां में ख्वाहिशों की लहरों पर तैरती बिना चप्पू वाली ही सही काश एक नाव मिल जाए उस अधूरी इच्छापूर्ति खुले गगन के नीचे वाली सौगात रुहानी लगती हैं तन को मिली तकलीफ भी सुहानी लगती है काली घनेरी रात सितारे सितारों से करते हैं बात आसमां के चांद में किसी का अक्स दिखता है असली खूबसूरती का वजूद सिर्फ शायर लिखता है काश चांद को छू सकूं दूधिया चांदनी पर चढ़ने को पांव मिल जाए मैं अपने अरमानों के फूल चढ़ाता सुहानी रातरानी लगती है तन को मिली तकलीफ भी सुहानी लगती है आग उगलते सूरज की तपती धूप में वृक्ष की शीतल छांव मिल जाए तो तन को मिली तकलीफ भी सुहानी लगती है कंक्रीट के जंगल ऊर्जा से निकलती बनावटी रोशनी