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पशु में, इंसान में, चेतना का फर्क है. जागृत न हुए

पशु में, इंसान में, 
चेतना का फर्क है.
जागृत न हुए इंसान
 का जीवन नर्क है।

जगत मिथ्या,
जगत ही माया है 
भोगों में रत इंसान 
इसे कहां समझ पाया है।

कर रहें है हम सब 
वही काम पीढ़ी दर पीढ़ी।
इसी चक्र में फंसे रहे तो 
कैसे मिलेगी स्वर्ग की सीढ़ी।

©Kamlesh Kandpal #maya
पशु में, इंसान में, 
चेतना का फर्क है.
जागृत न हुए इंसान
 का जीवन नर्क है।

जगत मिथ्या,
जगत ही माया है 
भोगों में रत इंसान 
इसे कहां समझ पाया है।

कर रहें है हम सब 
वही काम पीढ़ी दर पीढ़ी।
इसी चक्र में फंसे रहे तो 
कैसे मिलेगी स्वर्ग की सीढ़ी।

©Kamlesh Kandpal #maya
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Kamlesh Kandpal

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