तुम औरत हो ज़रा मोहतात रहना, ज़माना इस क़दर बदला नहीं है... -माजिद अली काविश वैसे तो औरतों पर बहोत कुछ कहा और लिखा गया है, लिखा जा भी रहा है...कोई आगे बढ़ने की कहानी लिख रहा, कोई औरत के दर्द, तो कोई उसकी बेवफ़ाई लिख रहा...आज मैंने भी कुछ पढ़ा - तुम औरत हो ज़रा मोहतात रहना, ज़माना इस क़दर बदला नहीं है... - माजिद अली काविश अक़्सर मैं औरतों और लड़कियों से खुद को काफ़ी हद तक जोड़ पाती हूँ, एक ऐसा रिश्ता सा बन गया है मेरी कलम का इस विषय से कि वो बातें न चाहते हुए भी मैं लिख लेती हूँ जो ये समाज ना ही सुनना चाहता और ना इस विषय में कोई बात चीत...