तरस क्यों रोता है तू जब किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता, तेरे पैरों के छाले अब किसी को नहीं गड़ता, तू छटपटाए या फिर गुर्राए कोई नहीं सुनेगा, तेरे रास्ते का कंकड़ तेरे सिवा कोई और नहीं चुनेगा, तू हस क्यूंकि लोग तुझे रुलाना नहीं छोड़ेंगे, तू कितना भी टूटा होगा पर लोग फिर भी तोड़ेंगे, यहां सब मस्त है अपनी जिंदगी की मौज में, कोई क्या देगा साथ तेरे अंदर के रौश में, रौशन जो राह हुई थी अब वहां पसरा अंधेरा है, और काली रातों के साए में लिपटा मेरा सवेरा है, खामोशी का पहन के जामा मैं युद्ध पर निकला हूं, और अपने ही खुशियों के लिए कई बार बिखरा हूं, ख्वाब इन आंखो में भी बहुत थे पर बह गए, और तूने जो भी किया हम सब सह गए, अब रोता नहीं हूं मैं पर मुस्कुराता भी नहीं हूं, मन भीतर से टूटा है फिर भी मैं बाहर से सही हूं, मुझे नहीं पता मैं क्या लिख रहा हूं और क्युं, पर सच ये है कि अब मैं खुश नहीं हूं, यहां लोगो को सिर्फ राय देना आता है, कैसे समझाऊं की तड़पते हुए कैसे मन मुस्कुराता है, और तेरे वजूद का सबूत क्या जब मैं सब सहता रहा, कैसा खुदा है तू जो सिर्फ मुझको ही तरसा रहा। तरस #yqbaba #yqdidi #yqtales #yqquotes #yqhindi #yqdada #yqbhaskar #yqmdwriter