वो चाहती थी कि मैं खफ़ा हो जाऊं, वो जब चाहे उसका हो जाऊं, वो दोस्ती चाहे तो दोस्त हो जाऊं, अजीब है ना, मैं करता रहा, हर सांचे में, खुद से ढलता रहा। पर , मुझ में भी चाह थी, और एक दिल मेरे सीने में भी, धड़कता था, भले ही कुछ कहे ना, पर हर चीज़ वो भी समझता था, वो फिर से टूटा है , शायद फिर किसी से उसका, साथ छूटा है, फिर भीड़ में कहीं रोकता है, बहने से खुद को, अजीब है ना , मैं करता रहा, हर साँचे में खुद से ढलता रहा।। #wo#chahti#thi