*विगत सप्ताह _माँ_ पर सृजित दोहों का संकलित रूप। सुधार के लिए सुझाव का प्रार्थी हूँ....* *अम्मा मैया मातु सब, जननी के हैं नाम।* *माता बिन कब बन सका, जग में कोई काम।।1* *माता जीवनदायिनी, माता सुखद फुहार।* *संतति संकट में पड़े, लेती सदा उबार।।2* *माता पालनहार है, ममता की प्रतिमूर्ति।* *खुद से पहले वह करे, सबकी इच्छापूर्ति।।3* *मैया का ऋण है बड़ा, उऋण न होगे आप।* *उसके ही आशीष से, बढ़ता पुण्यप्रताप।।4* *माता का पद ब्रह्म सम, माता अम्ब समान।* *माता के आशीष बिन, हो न सके कल्यान।।5* *जननी है जगवाहिनी, मैया पालनहार।* *माता की लें चरण रज, होगा बेड़ा पार।।6* *संस्कारों के बीज बो, संतति पाले मात।* *रचती दृढ़ व्यक्तित्व माँ, खटती है दिन रात।।7* *जीवन झंझावात से, जननी लड़ती नित्य।* *संतानें जब हों सफल, होती वह कृत कृत्य।।8* *निज संतति फूले-फले, रखे यही मन आस।* *करे निछावर वह सभी, जो है उसके पास।।9* *वो विचलित होती नहीं, भले कठिन हो राह।* *बच्चों पर विपदा न हो, हर जननी की चाह।।10* *खुद निर्धनता में रही, पर पहनाया ताज।* *चुका सकेंगे क्या कभी, ऋण को बच्चे आज।।11* *भूलें मत कर्तव्य हम, माँ का हो सम्मान।* *उनकी लाठी हम बनें, चले यही अभियान।।12* *यत्न करें कितना भले, जीवन भर हमलोग।* *चुका न पायें मातृ ऋण, भले करें उद्योग।।13* *नतमस्तक हों हम सभी, करके माँ की याद।* *प्रथम मातृ सम्मान हो, बाकी उसके बाद।।14* *पीकर जिसका दूध हम, हुए बड़े बलवान।* *करें नमन उस मातु को, मनुज और भगवान।।15* *प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, 10 जून 2019*