" सही और गलत" नई सोच की पुरानी सोच से बगावत हो गयी..! यानी एक जंग के ऐलान की हिमाकत हो गयी..! मेरे गाँव की हर ढाणी में खुद खुदा रहते हैं, उनकी मानो तो उजड़ में ही अदालत हो गयी..! न गवाह, न सबूत, न वो सफ़ाई मांगेंगे, बिना तर्क-वितर्क के देखो वकालत हो गयी..! सच ने कर लिया सुसाइड, घुट-घुट कर, एक बेपर्दा झूठी तस्वीर की इबादत हो गयी..! जिनके तजुर्बे की दुहाई देती रही, ये दुनिया, उसी तीरगी में शर्मसार सदाक़त हो गयी..! बेगुनाह होकर गुनहगार रहे सदियों से "हम", लड़की जैसे कुरआन की आयत हो गयी..! समाज से हम हैं, तो हमसे समाज क्यों नहीं? मेरे समाज के नाम पर क्यों सियासत हो गयी..? अफ़ीम में जो डूब गये थे, ये इज़्ज़त के ठेकेदार, तब ढोंगी रीत में, इज़्ज़त की तिज़ारत हो गयी..! पंचो के पंडाल में "आईना" रखने की इजाज़त दो.. वो परमेश्वर हैं तो क्यों तमाशा पंचायत हो गयी...? सब सच्चाई के पुजारी होने का दावे करते है,, जगदीश, फिर भी अन्याय की हिमायत हो गयी? :~ जगदीश पटेल ©Jagdish Patel #village ,#ruralsystem #panchsystem #horror #true #Haqiqat #phonecall