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मृत्यु क्या है, इसके सम्बन्ध में अनेक प्रकार की बा

मृत्यु क्या है, इसके सम्बन्ध में अनेक प्रकार की बातें जनता में फैली हुई हैं। परन्तु जीवन और मृत्यु का वास्तविक रूप क्या है? इसके ऊपर पुराने आचार्यों ने बहुत कुछ लिखा है। आत्मा को नित्य कहा गया है और शरीर अनित्य बतलाया है। आत्मा और पंच भौतिक शरीर के संयोग का नाम जीवन है और इनके वियोग का नाम मृत्यु है। यदि मृत्यु का परिणाम सोचा जावे तो यह सुखप्रद ही ठहरती है। जीवन और मृत्यु दिन और रात के समान हैं, यह सभी जानते हैं कि दिन काम करने के लिये और रात आराम करने के लिये है। मनुष्य दिन में काम करता है काम करने से उसके अन्तःकरण, मन, बुद्धि आदि बाह्यकरण, आँख, नाक, हाथ, पाँव, आदि सभी थककर काम करने के अयोग्य हो जाते हैं। और तब तक कुछ भी नहीं कर सकता इस प्रकार शक्ति का ह्रास होने पर रात्रि आती है दिन में जहाँ मनुष्य के शरीर के भीतर और बाहर की सभी इन्द्रियाँ अपना काम तत्परता से करती थीं, अब रात्रि आने पर मनुष्य गाढ़ी निद्रा में सो जाता है, अन्तःकरण और बाह्यकरण सभी विश्राम करते हैं। काम करने से जैसे शक्ति का ह्रास होता है वैसे ही विश्राम से शक्ति का संचय होता है। पुनः दिन आने पर मनुष्य उन शक्ति से काम लेता है फिर रात्रि आने पर शक्ति का भंडार भर दिया जाता है।यह काम भगवान की शक्ति से बिना किसी भूल के अनादि काल से चला आ रहा है। इसी प्रकार जीवन काम करने के लिये और मृत्यु विश्राम करने के लिये है। मनुष्य सारे जीवन काम ही काम करता रहता है, जरा भी विश्राम नहीं लेता है। बालकपन से लेकर जीवन के अन्तिम समय तक आत्मा को चैन नहीं मिलता है। वृद्धावस्था में काम करने के पुर्जे क्षीण होने लगते हैं, बड़ी कठिनता से काम करते हैं, अनेकों पुर्जे ऐसे निकम्मे और नष्ट-भ्रष्ट हो जाते हैं कि उनके सारे काम ही बन्द हो जाते हैं। जब मनुष्य किसी काम करने योग्य नहीं रहता है, दिन रात चारपाई पर पड़ा रहता है तो भी चिन्ता चिता से, तृष्णा की भँवर से, मुक्ति नहीं पाता है। शक्ति के क्षीण हो जाने से वह अनेकों कष्ट पाता है, तभी मृत्यु देवी आकर मनुष्य पर कृपा करती है। और आराम देकर निकम्मापन दूर करती है। जिस प्रकार मनुष्य रात्रि में आराम करके प्रातःकाल नवीन शक्ति नवीन स्फूर्ति को लेकर जाग उठता है, उसी प्रकार जीवन रूपी दिन में काम करके थककर मृत्यु रूपी रात्रि में विश्राम करके मनुष्य जीवन के प्रातःकाल में नवीन शक्ति और सामर्थ्य से युक्त बाल्यावस्था को प्राप्त होता है। जहाँ बुढ़ापे में हाथ पाँव हिलाना कठिन हो गया था सारा शरीर नष्ट-भ्रष्ट हो रहा था, जो दूसरों के देखने में भयंकर था, वही मृत्यु से विश्वान्त हो मनोहर मृदु दर्शनीय रूप में परिणत हो गया। बालक को जब देखिये, वह कुछ न कुछ चेष्टा करता होगा। इस प्रकार अच्छी तरह समझ में आ गया कि मृत्यु दुख देने के लिए नहीं सुख देने के लिये ही आती है। मृत्यु से डरें क्यों ?
मृत्यु क्या है, इसके सम्बन्ध में अनेक प्रकार की बातें जनता में फैली हुई हैं। परन्तु जीवन और मृत्यु का वास्तविक रूप क्या है? इसके ऊपर पुराने आचार्यों ने बहुत कुछ लिखा है। आत्मा को नित्य कहा गया है और शरीर अनित्य बतलाया है। आत्मा और पंच भौतिक शरीर के संयोग का नाम जीवन है और इनके वियोग का नाम मृत्यु है। यदि मृत्यु का परिणाम सोचा जावे तो यह सुखप्रद ही ठहरती है। जीवन और मृत्यु दिन और रात के समान हैं, यह सभी जानते हैं कि दिन काम करने के लिये और रात आराम करने के लिये है। मनुष्य दिन में काम करता है काम करने से उसके अन्तःकरण, मन, बुद्धि आदि बाह्यकरण, आँख, नाक, हाथ, पाँव, आदि सभी थककर काम करने के अयोग्य हो जाते हैं। और तब तक कुछ भी नहीं कर सकता इस प्रकार शक्ति का ह्रास होने पर रात्रि आती है दिन में जहाँ मनुष्य के शरीर के भीतर और बाहर की सभी इन्द्रियाँ अपना काम तत्परता से करती थीं, अब रात्रि आने पर मनुष्य गाढ़ी निद्रा में सो जाता है, अन्तःकरण और बाह्यकरण सभी विश्राम करते हैं। काम करने से जैसे शक्ति का ह्रास होता है वैसे ही विश्राम से शक्ति का संचय होता है। पुनः दिन आने पर मनुष्य उन शक्ति से काम लेता है फिर रात्रि आने पर शक्ति का भंडार भर दिया जाता है।यह काम भगवान की शक्ति से बिना किसी भूल के अनादि काल से चला आ रहा है। इसी प्रकार जीवन काम करने के लिये और मृत्यु विश्राम करने के लिये है। मनुष्य सारे जीवन काम ही काम करता रहता है, जरा भी विश्राम नहीं लेता है। बालकपन से लेकर जीवन के अन्तिम समय तक आत्मा को चैन नहीं मिलता है। वृद्धावस्था में काम करने के पुर्जे क्षीण होने लगते हैं, बड़ी कठिनता से काम करते हैं, अनेकों पुर्जे ऐसे निकम्मे और नष्ट-भ्रष्ट हो जाते हैं कि उनके सारे काम ही बन्द हो जाते हैं। जब मनुष्य किसी काम करने योग्य नहीं रहता है, दिन रात चारपाई पर पड़ा रहता है तो भी चिन्ता चिता से, तृष्णा की भँवर से, मुक्ति नहीं पाता है। शक्ति के क्षीण हो जाने से वह अनेकों कष्ट पाता है, तभी मृत्यु देवी आकर मनुष्य पर कृपा करती है। और आराम देकर निकम्मापन दूर करती है। जिस प्रकार मनुष्य रात्रि में आराम करके प्रातःकाल नवीन शक्ति नवीन स्फूर्ति को लेकर जाग उठता है, उसी प्रकार जीवन रूपी दिन में काम करके थककर मृत्यु रूपी रात्रि में विश्राम करके मनुष्य जीवन के प्रातःकाल में नवीन शक्ति और सामर्थ्य से युक्त बाल्यावस्था को प्राप्त होता है। जहाँ बुढ़ापे में हाथ पाँव हिलाना कठिन हो गया था सारा शरीर नष्ट-भ्रष्ट हो रहा था, जो दूसरों के देखने में भयंकर था, वही मृत्यु से विश्वान्त हो मनोहर मृदु दर्शनीय रूप में परिणत हो गया। बालक को जब देखिये, वह कुछ न कुछ चेष्टा करता होगा। इस प्रकार अच्छी तरह समझ में आ गया कि मृत्यु दुख देने के लिए नहीं सुख देने के लिये ही आती है। मृत्यु से डरें क्यों ?
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