------------------------!!---------------------- पलको के भीतर ख्वाब हैं पलते रतजगो में ही कटती हैं रतियां । दिन में रहती हैं ऐसी खुमारी पल पल बीते, तो लगे हैं सदियां । लब की सब कहन ,तो जग जाने है समझ न सके कोई,मन की बतियां । सांझ को राह तके ऐसे मुझको और घड़ी तके रहती हैं अखियां । पलको के भीतर ख्वाब हैं पलते रतजगो में ही कटती हैं रतियां । लोकेंद्र की कलम से✍️ #लोकेंद्र की कलम से