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पलको के भीतर ख्वाब हैं पलते
रतजगो में  ही कटती हैं रतियां ।

दिन में रहती हैं ऐसी खुमारी
पल पल बीते, तो लगे हैं सदियां ।

लब की सब कहन ,तो जग जाने है
समझ न सके कोई,मन की बतियां ।

सांझ को राह तके ऐसे मुझको
और घड़ी तके रहती हैं अखियां ।

पलको के भीतर ख्वाब हैं पलते
रतजगो में  ही कटती हैं रतियां ।

लोकेंद्र की कलम से✍️ #लोकेंद्र की कलम से
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पलको के भीतर ख्वाब हैं पलते
रतजगो में  ही कटती हैं रतियां ।

दिन में रहती हैं ऐसी खुमारी
पल पल बीते, तो लगे हैं सदियां ।

लब की सब कहन ,तो जग जाने है
समझ न सके कोई,मन की बतियां ।

सांझ को राह तके ऐसे मुझको
और घड़ी तके रहती हैं अखियां ।

पलको के भीतर ख्वाब हैं पलते
रतजगो में  ही कटती हैं रतियां ।

लोकेंद्र की कलम से✍️ #लोकेंद्र की कलम से